top of page

शिखरों के पार

हृदय को अकुलाता ये विचार है, दृष्टि को रोके जो ये पहाड़ है, बसता क्या शिखरों के उस पार है। उठती अब तल से चीख पुकार है, करती जो अंतः में...

बढ़ चलें हैं कदम फिर से

छोड़ कर वो घर पुराना, ढूंढें न कोई ठिकाना, बढ़ चलें हैं कदम फिर से छोड़ अपना आशियाना। ऊंचाई कहाँ हैं जानते, मंज़िल नहीं हैं मानते। डर जो कभी...

चल, उचक, चंदा पकड़ लें

पक चली उस कल्पना को रंग-यौवन-रूप फिर दें । संकुचित उस सोच के पंखों में फिर से जान भर दें । तर्क के बंधन से उठ कर बचपने का स्वाद चख लें ।...

मैं आस की चादर बुनती थी

चित्र श्रेय: गूगल इमेजेस जब चाँद छुपा था बादल में, था लिप्त गगन के आँगन में, मैं रात की चादर को ओढ़े तारों से बातें करती थी । मैं नभ के...

कविता की चोरी

शब्दों को कर के लय-बद्ध, लिखे मैंने वो चंद पद्य, मन की इच्छा के भाव थे वो, मेरे अंतर्मन का रिसाव थे वो, वो मेरी कहानी कहते थे, मेरे निकट...

खोयी पहचान

भू के कुछ वर्गों के पीछे हम लड़े सदियों यहाँ । मच गया विध्वंस पर किसको भला है क्या मिला ॥ संघर्ष के इतिहास में धूमिल है गाथा प्रान्त की ।...

स्मारक का गौरव

प्रम्बनन के जीर्ण  (छवि: प्रतीक अग्रवाल) टूटे-फूटे एक स्मारक ने घंटों की मुझसे बात । पिछले वर्षों के भूकंपों ने तोड़े थे उसके हाथ ॥ आया था...

ज्वलित बन तू

सूक्ष्म सी चिंगारी बन तू टिमटिमा जुगनू के संग संग। ज्वाला का सामर्थ्य रख तू अपने भीतर, अपने कण-कण॥ नम्रता की लौ भी बन तू जलती-बुझती,...

उठ जाग ! ऐ भारतीय !

Photo Courtesy Pratik Agarwal उत्तेजना संदेह से कुंठित हैं मनोभाव मिलती नही इस धूप से अब कहीं भी छाँव। हर अंग पर चिन्हित हुआ है भ्रष्ट का...

Blog: Blog2

©2021 by Surabhi Sonam. Proudly created with Wix.com

bottom of page