(Photo by Piero CRUCIATTI / AFP) (Photo by PIERO CRUCIATTI/AFP via Getty Images)
मेरा नाम शायद आपको पता नहीं होगा, जहां अस्पताल मिले मेरा पता वहीं होगा। केस नंबर २०४१ पुकारता हर कोई है, जाति और धर्म का संज्ञान ना कोई है।
परिवार जन को हफ्तों में नहीं देखा है, जैसे खिंची हमारे बीच लक्ष्मण की रेखा है। अब वो मुझसे मिलने नहीं आते हैं, बस फोन से ही हाल चाल पूछ जाते हैं।
पति भी मुझे देख कर मुंह ढक लेता है, ६ फीट की दूरी की हर बार सबक देता है। डॉक्टर्स और नर्सेस भी मुझसे कतराते हैं, मेरी हर सांस पर मुझसे दूर हो जाते हैं।
सहकर्मी मुझसे भयभीत से दिखते हैं, नर्स से ही हाल जान कर निकल लेते हैं। मेरी हर वस्तु, लोग सचेत हो छूते हैं, अब तो लोग मेरे परिवेश से भी रूठे हैं।
आज मेरा हर रिश्ता अमान्य हो गया है, मेरा अस्तित्व भी मुझसे अनजान हो गया है। मृत्यु के बाद भी में अछूत ही मानी जाऊंगी, अंतिम झलक के भी अयोग्य बन जाऊंगी।
संभवतः कोई मेरी राख तक ना उठाएगा, हाय! ये बीमारी सद्भाव भी खा जायेगा। जीवित होते हुए भी मेरा जीवन निर्जीव है, क्यूंकि मेरा शरीर कोरोना पॉज़िटिव है।
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