Photo Courtesy Pratik Agarwal
उत्तेजना संदेह से कुंठित हैं मनोभाव मिलती नही इस धूप से अब कहीं भी छाँव। हर अंग पर चिन्हित हुआ है भ्रष्ट का सवाल आता नहीं है मन में कोई अब दूसरा ख्याल॥
नीतियों में है कहीं फंसा वो राष्ट्रवाद विकास को रोके हुए, हर ओर का विवाद। ओढ़े हुए हैं मैली कुचली संस्कृति फटी आत्मदाह में जल रही किसानों की ये मिट्टी॥
धर्म की निरपेक्षता के नारे लगाते हम घर में ही अपने जाति पर लाशें बिछाते हम। उलझे हुए हैं चमडों के रंगों में वर्षों से कहने को तो सब हैं एक पर भिन्न अरसों से॥
सहन का हम पहने चोंगा, कहते हैं “चलता है! अपने इस देश में तो ऐसा ही होता है।” जी रहे हैं हम कब से, दूजों पे मढ़ के दोष आज खुद अनजान बन, खुद को रहे हैं नोंच॥
कब तक जियेंगे दोगले विचारों के कुँए में? कब तक रहेंगे इतिहास के साये के तले में? कब तक चलेंगे हाथ हम उस बीते कल की थाम? कि बन चुकी है लाश वो, ढल चुकी वो शाम॥
कि बुझ गयी है लौ अब नानक की आँखों की कि गिर गए सब पात अब बोधि की शाखों की। इतिहास का वो गौरव अब मद्धम सा है पड़ा पर अस्थियों की ढेर पर भारत यहीं खड़ा॥
उठ जाग कि भारत खड़ा संकीर्णता अधीन कब से पड़ा तू आँख मीचें, वो अब नहीं स्वाधीन। कुछ करो कि ये डोर अब तुम्हारे हाथ है इसकी हरेक लकीर अब तुम्हारे माथे है॥
है वक्त कि सब समझें कि भारत न अब महान है वक्त कि अब जानें कि वो जा चुके इंसान। है वक्त कि अब जाग और पहचान अपना स्थान है वक्त कि अब हमारा भविष्य पर हो ध्यान॥
ले लो अब शपथ और ठान लो तुम आज भारत है तुम्हारा, तुम ही रखोगे लाज। कर लो एक वचन ही बदलेंगे हम कुछ आज बदलेंगे स्वयं को सभी, तभी बदलेगा समाज॥
कि हम बनें चाणक्य, आर्यभट्ट बनें हम आज कि हम ही चरक, बसु और भाभा भी हम ही आज। कि हम बनें सुभाष और शिवाजी हम ही बनें कि हम ही लक्ष्मी बाई और गांधी भी हम बनें॥
बदलेंगे हम सब आदतें बदलेंगे हम आधार जो खो गयी इतिहास में लायेंगे हम वो धार। यूँ बदले हम अब स्वयं, कि अविवेकी भी प्रेरित हो हमारे इस प्रयास से भारत सुसज्जित हो।
बनाएंगे हम सार्थक तिरंगे के चक्र को देखे उसे जो भारती, उसको भी फ़क्र हो॥ जल उठे लहर क्रांति की हर दिल में दिया बन कि उस दिए तले भारत फिर से बने रोशन॥
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