कैसे मैं पहचानूँ तुमको? कद, काठी या चाल से? कैसे मैं पहचानूँ तुमको? रंगत या बिखरे बाल से?
हाय! आँखों की पहले गहराई क्यों नहीं नापी थी! शायद! चेहरे पर खिलती मुस्कान तुम्हारी काफी थी।
उफ़! इस मास्क ने मेरा कर दिया है कैसा हाल ये। कैसे मैं पहचानूँ तुमको? कद, काठी या चाल से?
पहना था मास्क अभी तक पर्दा नशीन और डाकुओं ने। छुपाते थे पहचान जो अपनी पहना था उन लड़ाकुओं ने।
आपदा कैसी आई ये कि प्यार को बाँधा है रुमाल से कैसे मैं पहचानूँ तुमको? कद, काठी या चाल से?
इंद्र सा कोई फरेबी कभी न धर ले रूप तेरा। गौतम बन कर तू भी तब अहल्या सा धड़ जड़ दे मेरा।
डरती हूँ हर पल मैं अब ऐसे किसी ख्याल से। कैसे मैं पहचानूँ तुमको कद, काठी या चाल से?
रंग के प्रकार की सीमा आखिर भला है क्यूं होती? वरना अनोखा मास्क बना मैं हाथ तुम्हारे धर देती।
फिर शायद कभी ना होता जीवन में मेरे बवाल ये। कि कैसे पहचानूँ तुमको कद, काठी या चाल से।
गंध तुम्हारी खोई सदा इत्र की भीनी खुशबु में, बदलना न ये इत्र कभी तुम पहचानूँ ताकि उससे मैं।
पर कंपनी बनाती होगी कई बोतलें साल में। हाय! कैसे पहचानूँ तुमको कद, काठी या चाल से?
अँगुलियों की छाप लेने का सेंसर नहीं है मेरे पास। आवाज़ के थिरकन की भी तो माप नहीं है मुझको याद।
रह-रह कर मन में मेरे अब उठता बस है सवाल ये। कैसे मैं पहचानूँ तुमको? कद, काठी या चाल से?
ऐसा करो, तुम मुझे एक पासवर्ड ही बना दे दो। फेस रिकॉग्निशन फेल सही क्रॉसवर्ड ही मेरे संग खेलो।
जवाब जिसका गुप्त रखें बनाओ ऐसा सवाल ये। ताकि मैं पहचानूँ तुमको सदा उसी शब्द-जाल से।
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